चलती हुई “कहानियों” के जवाब तो बहुत है मेरे पास ….लेकिन खत्म हुए “किस्सों” की खामोशी ही बेहतर है.
आहिस्ता आहिस्ता कीजिये कत्ल मेरे अरमानों का……
कहीं सपनों से लोगों का ऐतबार ना उठ जाए..
इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये..कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।
शिकवा भी होगा हमसे शिकायत भी होगी,
पर दोस्त से गिला किया नहीं करते।
हम अच्छे नहीं बुरे ही सही,
तुम्हें वैलेंटाइन मुबारक हो,
लेकिन हम जैसा दोस्त मिला नहीं करते।।